सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार को एक अहम रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो उसे दोनों पर हमला माना जाएगा।
सऊदी प्रेस एजेंसी के अनुसार, यह करार दोनों देशों की सुरक्षा बढ़ाने और वैश्विक शांति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। समझौते में रक्षा सहयोग और संयुक्त डिफेंस कोऑपरेशन शामिल है।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस डील के तहत सैन्य सहयोग को और मजबूत किया जाएगा। इसमें जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का विकल्प भी शामिल है। समझौते के मौके पर पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसीम मुनीर भी मौजूद थे।
समझौते की अहम बातें
दोनों देशों ने कहा कि यह समझौता किसी खास देश के खिलाफ नहीं है, बल्कि लंबे समय से चली आ रही रणनीतिक साझेदारी को औपचारिक रूप देता है।
हाल ही में पाकिस्तान ने मुस्लिम देशों को मिलकर NATO जैसी संयुक्त फोर्स बनाने का सुझाव दिया था।
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार ने कहा था कि न्यूक्लियर पावर होने के नाते पाकिस्तान इस्लामिक उम्माह की रक्षा के लिए जिम्मेदारियां निभाएगा।
एक्सपर्ट्स की राय
अमेरिका में पूर्व राजदूत जलमय खलीलजाद ने कहा कि यह भले ही औपचारिक "संधि" न हो, लेकिन रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है। उन्होंने सवाल उठाए कि क्या इसमें कोई गुप्त क्लॉज भी शामिल हैं और क्या यह दिखाता है कि सऊदी अब पूरी तरह अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर निर्भर नहीं रहना चाहता।
भारत की प्रतिक्रिया
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत इस समझौते से राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करेगा। उन्होंने साफ किया कि भारत अपनी सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
अमेरिका-पाकिस्तान का पुराना रक्षा समझौता
पाकिस्तान ने इससे पहले अमेरिका के साथ भी ऐसा ही समझौता किया था।
1954: म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (MDAA) साइन हुआ था, जिसके तहत दोनों देशों ने सैन्य सहयोग का वादा किया।
पाकिस्तान SEATO (1954) और CENTO (1955) में भी शामिल हुआ।
अमेरिका ने पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर हथियार और प्रशिक्षण दिए।
1979: ईरान क्रांति, अफगानिस्तान युद्ध और पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते यह गठबंधन टूट गया।
भारत-पाकिस्तान की 1947, 1965 और 1971 की जंगों में भी अमेरिका ने पाकिस्तान की सीधे सैन्य मदद नहीं की, जबकि समझौते मौजूद थे। अमेरिका ने इन्हें क्षेत्रीय विवाद माना था।
कुल मिलाकर, सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता दोनों देशों के रिश्तों को नई दिशा देता है और मिडिल ईस्ट की रणनीतिक स्थिति पर गहरा असर डाल सकता है।