H-1B वीजा के लिए अमेरिका लेगा ₹88 लाख, नया नियम लागू

अमेरिका अब H-1B वीजा के लिए हर साल $100,000 (लगभग ₹88 लाख) एप्लिकेशन फीस वसूल करेगा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शनिवार को व्हाइट हाउस में इस आदेश पर साइन किए। नए चार्ज 21 सितंबर 2025 से लागू होंगे।

पहले H-1B वीजा औसतन 5 लाख रुपए का होता था और यह तीन साल के लिए वैध रहता था। अब नई फीस के तहत 6 साल में H-1B वीजा का खर्च लगभग ₹5.28 करोड़ हो जाएगा, यानी लगभग 50 गुना बढ़ोतरी।

अमेरिका हर साल लॉटरी के जरिए 85,000 H-1B वीजा जारी करता है, जिनमें अधिकांश तकनीकी नौकरियों के लिए जाते हैं। 72% वीजा धारक भारतीय हैं। नई फीस लागू होने से 3 लाख से ज्यादा भारतीयों पर इसका सीधा आर्थिक असर पड़ेगा।

ट्रम्प प्रशासन ने H-1B वीजा में बदलाव के साथ तीन नए वीजा कार्ड भी लॉन्च किए हैं: ‘ट्रम्प गोल्ड कार्ड’, ‘ट्रम्प प्लेटिनम कार्ड’ और ‘कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड’। ट्रम्प गोल्ड कार्ड (लगभग ₹8.8 करोड़ कीमत) धारक को अमेरिका में अनलिमिटेड स्थायी निवास का अधिकार देगा।

H-1B वीजा क्या है?

H-1B एक नॉन-इमिग्रेंट वीजा है, जो स्पेशल टेक्निकल स्किल्स जैसे IT, आर्किटेक्चर और हेल्थ सेक्टर के लिए जारी किया जाता है। अमेरिकी सरकार हर साल 85,000 वीजा जारी करती है। अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियों को सबसे ज्यादा वीजा मिलते हैं।

भारतीयों पर असर:

H-1B वीजा नियमों में बदलाव से 2,00,000 से अधिक भारतीय प्रभावित होंगे। आईटी/टेक कंपनियों के लिए अब इतनी ऊंची फीस पर कर्मचारियों को अमेरिका भेजना महंगा हो जाएगा। मिड-लेवल और एंट्री-लेवल कर्मचारियों के लिए वीजा पाना मुश्किल होगा, और कंपनियां नौकरियों को आउटसोर्स करने पर विचार कर सकती हैं।

नई फीस और नियम:

21 सितंबर 2025 से H-1B वीजा पर हर साल $100,000 की फीस लागू होगी, यह नए आवेदनों और मौजूदा वीजा धारकों के रिन्यूअल दोनों पर लागू होगी। भुगतान न होने पर याचिका रद्द की जाएगी। अगर कोई कर्मचारी अमेरिका से बाहर जाएगा, तो उसे वापस आने पर यह शुल्क चुकाना होगा।

कंपनियों और गोल्ड कार्ड की योजना:

इंफोसिस, TCS, विप्रो, कॉग्निजेंट और HCL जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा H-1B स्पॉन्सर करती हैं। ट्रम्प प्रशासन ने कहा कि अब केवल टॉप क्लास और स्किल्ड कर्मचारियों को ही वीजा मिलेगा। नए ट्रंप गोल्ड कार्ड का उद्देश्य यही है कि अमेरिका में केवल सबसे योग्य विदेशी कर्मचारी ही टिकें। सरकार लगभग 80,000 गोल्ड कार्ड जारी करने की योजना बना रही है।

EB-1 और EB-2 वीजा की जगह गोल्ड कार्ड:

नए गोल्ड कार्ड से अमेरिकी नागरिकों जैसी सुविधाएं मिलेंगी। इसमें पासपोर्ट और वोटिंग अधिकार शामिल होंगे। EB-1 और EB-2 वीजा की जगह यह कार्ड लेगा। आवेदन के लिए सरकारी वेबसाइट https://trumpcard.gov/

 पर नाम, ईमेल और क्षेत्र की जानकारी देनी होगी। 15,000 डॉलर की जांच फीस के बाद सुरक्षा जांच पूरी करनी होगी।

ट्रम्प प्रशासन का उद्देश्य:

H-1B प्रोग्राम का सही उपयोग सुनिश्चित करना और अमेरिकी कर्मचारियों के लिए नौकरियां सुरक्षित रखना। नए नियमों के तहत केवल सबसे योग्य विदेशी कर्मचारी ही अमेरिका आ सकेंगे, जिससे वीजा प्रणाली का दुरुपयोग रोका जा सकेगा।


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अमेरिका में एयर ट्रैफिक ठप, तकनीकी गड़बड़ी से सैकड़ों उड़ानें लेट

अमेरिका के डलास क्षेत्र के दो हवाई अड्डों पर यात्रियों को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ा है। 1800 से अधिक उड़ानों में देरी हुई है, जबकि सैकड़ों उड़ानों को रद्द भी किया गया। इससे यात्रियों की चिंता बढ़ गई है और वे हवाई अड्डों पर अगले अपडेट का इंतजार कर रहे हैं।

संघीय उड्डयन प्रशासन (FAA) के अनुसार, यह स्थिति दूरसंचार में आई गड़बड़ी के कारण उत्पन्न हुई। FAA ने उड़ानों को अस्थायी रूप से रोक दिया है। एजेंसी का कहना है कि FAA ने स्थानीय टेलीफोन कंपनी के साथ मिलकर समस्या का पता लगाने और समाधान करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

डलास फोर्ट वर्थ हवाई अड्डे के लिए उड़ानें रात 11 बजे (पूर्वी समय) तक रोक दी गई हैं, जबकि डलास लव फील्ड के लिए यह समय कम से कम रात 8:45 बजे तक है। FAA ने स्पष्ट किया है कि यह रोक पूरी तरह FAA के उपकरणों की वजह से नहीं है।

फ्लाइटअवेयर की रिपोर्ट के अनुसार, एयरलाइनों ने डलास में अपनी लगभग 20% उड़ानें रद्द कर दी हैं। अमेरिकन एयरलाइंस ने 200 से अधिक उड़ानें रद्द की हैं और 500 से अधिक उड़ानों में देरी हुई है।

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सऊदी अरब और पाकिस्तान ने किया रक्षा समझौता, हमले की स्थिति में मिलकर देंगे जवाब

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार को एक अहम रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो उसे दोनों पर हमला माना जाएगा।

सऊदी प्रेस एजेंसी के अनुसार, यह करार दोनों देशों की सुरक्षा बढ़ाने और वैश्विक शांति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। समझौते में रक्षा सहयोग और संयुक्त डिफेंस कोऑपरेशन शामिल है।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस डील के तहत सैन्य सहयोग को और मजबूत किया जाएगा। इसमें जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का विकल्प भी शामिल है। समझौते के मौके पर पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसीम मुनीर भी मौजूद थे।

समझौते की अहम बातें

दोनों देशों ने कहा कि यह समझौता किसी खास देश के खिलाफ नहीं है, बल्कि लंबे समय से चली आ रही रणनीतिक साझेदारी को औपचारिक रूप देता है।

हाल ही में पाकिस्तान ने मुस्लिम देशों को मिलकर NATO जैसी संयुक्त फोर्स बनाने का सुझाव दिया था।

पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार ने कहा था कि न्यूक्लियर पावर होने के नाते पाकिस्तान इस्लामिक उम्माह की रक्षा के लिए जिम्मेदारियां निभाएगा।

एक्सपर्ट्स की राय

अमेरिका में पूर्व राजदूत जलमय खलीलजाद ने कहा कि यह भले ही औपचारिक "संधि" न हो, लेकिन रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है। उन्होंने सवाल उठाए कि क्या इसमें कोई गुप्त क्लॉज भी शामिल हैं और क्या यह दिखाता है कि सऊदी अब पूरी तरह अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर निर्भर नहीं रहना चाहता।

भारत की प्रतिक्रिया

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत इस समझौते से राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सुरक्षा पर पड़ने वाले असर का अध्ययन करेगा। उन्होंने साफ किया कि भारत अपनी सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

अमेरिका-पाकिस्तान का पुराना रक्षा समझौता

पाकिस्तान ने इससे पहले अमेरिका के साथ भी ऐसा ही समझौता किया था।

1954: म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (MDAA) साइन हुआ था, जिसके तहत दोनों देशों ने सैन्य सहयोग का वादा किया।

पाकिस्तान SEATO (1954) और CENTO (1955) में भी शामिल हुआ।

अमेरिका ने पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर हथियार और प्रशिक्षण दिए।

1979: ईरान क्रांति, अफगानिस्तान युद्ध और पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते यह गठबंधन टूट गया।

भारत-पाकिस्तान की 1947, 1965 और 1971 की जंगों में भी अमेरिका ने पाकिस्तान की सीधे सैन्य मदद नहीं की, जबकि समझौते मौजूद थे। अमेरिका ने इन्हें क्षेत्रीय विवाद माना था।

 कुल मिलाकर, सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता दोनों देशों के रिश्तों को नई दिशा देता है और मिडिल ईस्ट की रणनीतिक स्थिति पर गहरा असर डाल सकता है।


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ट्रंप को एक और झटका, US कोर्ट ने पहले टैरिफ पर लगाई रोक

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिकी कोर्ट से फिर एक बार झटका लगा है। टैरिफ को गैरकानूनी बताने के बाद अमेरिकी न्यायालय ने ट्रंप के फास्ट ट्रैक डिपोर्टेशन की आलोचना की है। कोर्ट का कहना है कि ट्रंप का यह फैसला अप्रवासियों के अधिकारों का हनन है।

वाशिंगटन डीसी की जिला जज जिया कॉब के अनुसार, जनवरी में ट्रंप प्रशासन ने अप्रवासियों को बाहर निकालना शुरू किया था। इसके तहत अप्रवासियों को कहीं भी गिरफ्तार कर लिया जाता है।

जज ने क्या कहा?

जस्टिस जिया के अनुसार, अप्रवासियों को पहले भी चिह्नित करके बाहर निकाला जाता था। मगर, जनवरी के बाद यह प्रक्रिया तेज हो गई। जिन लोगों के पास अमेरिका की नागरिकता नहीं है और न ही उनके पास यह प्रमाण है कि वो 2 साल से अमेरिका में रह रहे हैं, उन्हें फौरन गिरफ्तार कर लिया जाता है।

जस्टिस कॉब ने कहा-

पांचवें संशोधन के तहत अप्रवासियों को भी अधिकार मिले हैं। मगर ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से उनकी स्वतंत्रता को गहरा अघात लगा है। हर चीज से परे सिर्फ अप्रवासियों को किसी भी तरह देश से बाहर करने पर फोकस करना सही नहीं है।

ट्रंप प्रशासन ने लगाई गुहार

अमेरिकी अदालत के इस फैसले पर ट्रंप प्रशासन ने रोक लगाने की अपील की है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि वो इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। मगर, जिला जज ने अपने फैसले पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया है।

टैरिफ को बताया गैरकानूनी

बता दें कि इससे पहले अमेरिका की एक संघीय अदालत ने ट्रंप के टैरिफ को भी गैरकानूनी बताया था। कोर्ट ने टैरिफ हटाने और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए ट्रंप प्रशासन को 14 अक्टूबर तक का समय दिया है।




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अमेरिका में रहने वाले स्टूडेंट के लिए वीज़ा के नियमो में बदलाव किया

अमेरिका ने विदेशी स्टूडेंट्स (F), एक्सचेंज विजिटर्स (J) और विदेशी मीडिया प्रतिनिधियों (I) के लिए वीजा नियमों में बड़े बदलावों का ऐलान किया है।

अब इन वीजा धारकों को अनिश्चितकाल के लिए नहीं, बल्कि एक निश्चित समय के लिए अमेरिका में रहने की इजाजत होगी। अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने इस बदलाव का प्रस्ताव रखा है, ताकि इन वीजा धारकों पर नजर रखी जा सके और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत किया जाए।

इस नए नियम के तहत, अगर कोई स्टूडेंट, एक्सचेंज विजिटर या मीडिया प्रतिनिधि अपनी तय समय-सीमा से ज्यादा वक्त तक अमेरिका में रहना चाहता है, तो उसे DHS से एक्सटेंशन ऑफ स्टे (EOS) के लिए अर्जी देनी होगी।

यह प्रस्ताव इसलिए लाया गया है, क्योंकि मौजूदा "ड्यूरेशन ऑफ स्टेटस" नियम के तहत इन लोगों को बिना किसी निश्चित तारीख के रहने की छूट थी, जिससे फ्रॉड और नियम तोड़ने की आशंका बढ़ गई थी।

क्यों जरूरी है यह बदलाव?

DHS का कहना है कि मौजूदा सिस्टम में इमिग्रेशन अधिकारियों को यह जांचने का मौका नहीं मिलता कि वीजा धारक नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं।

2023 में अमेरिका में 16 लाख से ज्यादा F-1 स्टूडेंट्स, 5 लाख से ज्यादा J एक्सचेंज विजिटर्स और 32,470 I वीजा धारक दाखिल हुए। इतनी बड़ी तादाद में लोगों की निगरानी मुश्किल हो रही थी।

नए नियमों से DHS को समय-समय पर यह जांचने का मौका मिलेगा कि वीजा धारक सिर्फ वही काम कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें इजाजत दी गई है। इससे न सिर्फ सिस्टम में पारदर्शिता आएगी, बल्कि फ्रॉड और गैरकानूनी गतिविधियों पर भी लगाम लगेगी।

क्या हैं नए नियमों की खास बातें?

प्रस्तावित नियमों में कई अहम बदलाव शामिल हैं। मिसाल के तौर पर, F और J वीजा धारकों को अधिकतम चार साल की अवधि के लिए प्रवेश या एक्सटेंशन मिलेगा। F-1 स्टूडेंट्स के लिए पढ़ाई खत्म होने के बाद दी जाने वाली ग्रेस पीरियड को 60 दिन से घटाकर 30 दिन किया जाएगा। इसके अलावा, ग्रेजुएट लेवल के F-1 स्टूडेंट्स अब बीच में अपना प्रोग्राम नहीं बदल सकेंगे।

 वीजा धारकों (विदेशी मीडिया) के लिए 240 दिन की समय-सीमा तय की गई है, सिवाय कुछ खास मामलों के, जैसे कि पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से जुड़े मामलों में। इन बदलावों का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि हर वीजा धारक अमेरिकी इमिग्रेशन कानूनों का पालन करे।

कैसे होगा असर और क्या है आगे का रास्ता?

ये नियम F, J और I वीजा धारकों को बाकी नॉन-इमिग्रेंट वीजा कैटेगरी की तरह लाएंगे, जिनके लिए पहले से ही निश्चित समय-सीमा लागू है। DHS का मानना है कि इससे निगरानी आसान होगी और सिस्टम की मजबूती बढ़ेगी।

इन प्रस्तावित नियमों पर जनता अपनी राय दे सकती है। इसके लिए फेडरल रजिस्टर नोटिस में दी गई समय-सीमा के भीतर Docket No. ICEB-2025-0001 के तहत कमेंट्स जमा करने होंगे। अगर ये नियम लागू हो गए, तो विदेशी स्टूडेंट्स, एक्सचेंज विजिटर्स और मीडिया प्रतिनिधियों के लिए अमेरिका में रहने का तरीका पूरी तरह बदल जाएगा।


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टैरिफ के बाद भारत ने अमेरिका के लिए सभी तरह के डाक सामानों की बुकिंग बंद की

ट्रम्प के टैरिफ के जवाब में भारतीय डाक विभाग 25 अगस्त से अमेरिका के लिए सभी तरह के डाक सामानों की बुकिंग बंद करने जा रही है। फिलहाल ये फैसला अस्थायी रूप से लागू होगा बाद में अमेरिका के रूख के हिसाब से इसमें आगे बदलाव होगा।

दरअसल विभाग अमेरिका के एक नए टैरिफ के चलते अपनी सेवाओं में बदलाव कर रहा है। अमेरिकी प्रशासन ने 30 जुलाई 2025 को एक आदेश (एग्जीक्यूटिव ऑर्डर नंबर 14324) जारी किया था, जिसके तहत 800 डॉलर तक की कीमत वाले सामानों पर मिलने वाली ड्यूटी-फ्री छूट 29 अगस्त 2025 से खत्म हो जाएगी।

अब अमेरिका जाने वाले सभी डाक सामानों पर, चाहे उनकी कीमत कुछ भी हो, कस्टम ड्यूटी देनी होगी। यह ड्यूटी इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट (IEEPA) के तहत देश-विशेष टैरिफ नियमों के आधार पर लगेगी। हालांकि, 100 डॉलर तक के गिफ्ट आइटम को इस ड्यूटी से छूट मिलेगी।


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श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को किया गया गिरफ्तार

श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को गिरफ्तार कर लिया गया है। बताया जा रहा है कि कथित भ्रष्टाचार के मामले में उनकी गिरफ्तारी हुई है। जानकारी के अनुसार, शुक्रवार को कोलंबो में क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (CID) ने पूर्व राष्ट्रपति को गिरफ्तार किया है।

बता दें कि उनकी गिरफ्तारी ऐसे समय पर हुई है, जब वह अपनी पुराने एक भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में अपना बयान दर्ज कराने के लिए सीआईडी के ऑफिस पहुंचे थे।

गए थे बयान दर्ज कराने हो गई गिरफ्तारी

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे शुक्रवार को एफसीआईडी के सामने पेश हुए थे। यहां पर वह अपना बयान दर्ज कराने के लिए पहुंचे थे। अधिकारियों का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति की गिरफ्तारी के बाद उन्हें कोलंबो फोर्ट मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा।


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अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ भारत के सपोर्ट में चीन

चीन के राजदूत शू फीहोंग ने गुरुवार को भारत पर लगाए गए 50% अमेरिकी टैरिफ की निंदा की। उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित एक प्रोग्राम में कहा कि चीन इसका कड़ा विरोध करता है। चुप रहने से दबंगई को बढ़ावा मिलता है। चीन भारत के साथ मजबूती से खड़ा है।

फीहोंग ने भारत और चीन के बीच रणनीतिक भरोसे और सहयोग को मजबूत करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों देश प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि साझेदार हैं और मतभेदों को बातचीत के जरिए सुलझाना चाहिए।

चीनी राजदूत ने कहा- भारत और चीन को आपसी संदेह से बचना चाहिए और रणनीतिक भरोसे को बढ़ाना चाहिए। दोनों देशों के लिए एकजुटता और सहयोग ही साझा विकास का रास्ता है।

अमेरिका ने भारत कुल 50% टैरिफ लगाया है। इसमें से एक्स्ट्रा 25% टैरिफ रूसी तेल खरीदने की वजह से लगाया है, जो 27 अगस्त से लागू होगा। अमेरिका का कहना है कि भारत के रूसी तेल खरीदने की वजह से रूस को यूक्रेन जंग में मदद मिल रही है।

फीहोंग बोले- भारत-चीन दोस्ती दुनिया के लिए फायदेमंद

फीहोंग ने ग्लोबल हालात पर कहा कि दुनिया इस समय बड़े बदलावों से गुजर रही है और ऐसे में भारत-चीन रिश्तों का महत्व और बढ़ गया है। उन्होंने कहा- भारत और चीन एशिया की आर्थिक प्रगति के दो इंजन हैं। हमारी दोस्ती न सिर्फ एशिया बल्कि पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद है।

फीहोंग ने कहा कि SCO समिट के लिए पीएम मोदी चीन यात्रा दोनों देशों के संबंधों को नई गति देगी।" यह विजिट 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन के तियानजिन में होगी।

हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने पीएम मोदी से मुलाकात कर उन्हें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का निमंत्रण सौंपा था। मोदी ने निमंत्रण स्वीकार करते हुए कहा कि वह शी जिनपिंग से तियानजिन में मुलाकात के लिए उत्सुक हैं।

भारत-चीन के रिश्ते लगातार बेहतर हो रहे

चीनी राजदूत ने कहा कि पिछले साल रूस के कजान में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद भारत और चीन के रिश्ते लगातार बेहतर हो रहे हैं।

दोनों देश एक-दूसरे के हितों का सम्मान कर रहे हैं और आपसी समझ बढ़ा रहे हैं। इस दौरान कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू होना भी एक बड़ा कदम है।

दोनों देश लिपुलेख के रास्ते फिर व्यापार शुरू करेंगे

भारत और चीन ने हाल ही में उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे के रास्ते फिर व्यापार शुरू करने पर सहमति जताई है। यह फैसला 18-19 अगस्त को चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के दौरान हुआ। बातचीत में लिपुलेख के साथ शिपकी ला और नाथु ला दर्रों से भी कारोबार बहाल करने का फैसला लिया गया।

भारत और चीन के बीच लिपुलेख के रास्ते 1954 से व्यापार हो रहा है, जो हाल के सालों में कोरोना और अन्य वजहों से रुका था। अब दोनों देशों ने इसे फिर शुरू करने का फैसला किया है। 

गलवान झड़प से बिगड़े थे भारत-चीन रिश्ते

15 जून 2020 को चीन ने ईस्टर्न लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में एक्सरसाइज के बहाने सैनिकों को जमा किया था। इसके बाद कई जगह पर घुसपैठ की घटनाएं हुई थीं।

भारत सरकार ने भी इस इलाके में चीन के बराबर संख्या में सैनिक तैनात कर दिए थे। हालात इतने खराब हो गए कि LAC पर गोलियां चलीं।

इसी दौरान 15 जून को गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हुई झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। बाद में भारत ने भी इसका मुंहतोड़ जवाब दिया था। इसमें करीब 60 चीनी जवान मारे गए थे।

इस घटना के बाद दोनों देशों के रिश्ते काफी तनावपूर्ण हो गए थे, लेकिन बाद में पीएम मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग की मुलाकात से इनमें सुधार शुरू हुआ है।


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साउथ अमेरिका के पास समंदर में भूकंप के तेज झटके, 7.5 तीव्रता से कांप गया

 साउथ अमेरिका के ड्रेक पैसेज इलाके में जोरदार भूकंप आया। शुरूआत में भूकंप की तीव्रता 8 बताई जा रही है। हालांकि बाद में अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (यूएसजीएस) ने इसकी तीव्रता 7.5 कर दी गई।

इस जोरदार भूकंप के बाद सुनामी की वॉर्निंग जारी कर दी गई है। यूएसजीएस के आंकड़ों के अनुसार, भूकंप 10.8 किलोमीटर की गहराई पर आया।

हालांकि अमेरिकी सुनामी चेतावनी प्रणाली ने ड्रेक पैसेज भूकंप के बाद कोई चेतावनी जारी नहीं की, लेकिन प्रशांत सुनामी चेतावनी केंद्र (पीटीडब्ल्यूसी) ने चिली के लिए संक्षिप्त चेतावनी जारी की है। इसमें कहा गया कि ड्रेक पैसेज में आए भूकंप से अगले तीन घंटों के भीतर चिली के कुछ तटों पर खतरनाक सुनामी लहरें उठने की आशंका है।


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आम जनता को नहीं मिलेगा रूस के सस्ते तेल का लाभ

बीते 3 साल से भारत को 5 से 30 डॉलर प्रति बैरल के डिस्काउंट पर रूस से क्रूड ऑयल मिल रहा है। इस डिस्काउंट का 65% फायदा रिलायंस और नायरा जैसी प्राइवेट कंपनियों के साथ इंडियन ऑयल और भारत पेट्रोलियम जैसी सरकारी कंपनियों को मिला। वहीं सरकार को 35% फायदा मिला। आम आदमी के हिस्से कुछ नहीं आया।

बीते दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर 50% टैरिफ लगाया है। उन्होंने इसका कारण रूस से तेल खरीद को बताया है। ट्रम्प का कहना है कि भारतीय रिफाइनरी कंपनियां इसे प्रोसेस करके यूरोप और अन्य देशों में बेच देती हैं। भारत को इस बात की कोई परवाह नहीं है कि रूस के हमले से यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं।

आम आदमी को सस्ते तेल का फायदा क्यों नहीं मिल रहा?

जवाब: भले ही तेल की कीमतें कागज पर डी-रेगुलेटेड हों, लेकिन रिटेल कीमतें सरकार और तेल कंपनियों के नियंत्रण में हैं। सरकार को टैक्स से स्थिर आय चाहिए और तेल कंपनियां पुराने LPG सब्सिडी के नुकसान का हवाला देकर अपने मार्जिन को जायज ठहराती हैं। नतीजा यह है कि सस्ते तेल का फायदा कंपनियों और सरकार के खजाने में जा रहा है, न कि आम लोगों की जेब में।

पेट्रोल और डीजल की कीमत का एक बड़ा हिस्सा टैक्स में चला जाता है। केंद्र सरकार पेट्रोल पर 13 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी वसूलती है। इसके अलावा, राज्य सरकारें वैल्यू-एडेड टैक्स (VAT) लगाती हैं। कुल मिलाकर, पेट्रोल की कीमत का 46% और डीजल की कीमत का 42% हिस्सा टैक्स होता है।

केंद्र सरकार हर साल इस टैक्स से 2.7 लाख करोड़ रुपए और राज्य सरकारें 2 लाख करोड़ रुपए कमाती हैं। अप्रैल 2025 में एक्साइज ड्यूटी में 2 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी से केंद्र को अतिरिक्त 32,000 करोड़ रुपए की कमाई हुई। सरकार के लिए यह टैक्स एक स्थिर और भरोसेमंद आय का स्रोत है। सस्ते तेल का फायदा ग्राहकों को देने के बजाय सरकार इस पैसे को अपने खजाने में रख रही है ताकि दूसरे खर्चे पूरे कर सके।

सवाल 2: तेल कंपनियों को सस्ते तेल से कितना मुनाफा हुआ?

जवाब: वित्त वर्ष 2020 में भारत अपनी जरूरत का केवल 1.7% तेल रूस से आयात करता था। ये हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2025 में बढ़कर 35.1% हो गई है। रूस से सस्ता तेल खरीदने का फायदा ऑयल कंपनियों के मुनाफे पर भी दिखा है।

2022-23 में इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम का कुल मुनाफा ₹3,400 करोड़ था।

2023-24 में इन तीनों सरकारी कंपनियों का मुनाफा 25 गुना बढ़ गया। तीनों ने मिलकर 86,000 करोड़ रुपए कमाए।

2024-2025 में इन कंपनियों का मुनाफा कम होकर 33,602 करोड़ रुपए हो गया, लेकिन ये 2022-23 के मुनाफे से ज्यादा है।

वहीं प्राइवेट रिफाइनरियों की बात की जाए तो भारत में मुख्य तौर पर दो बड़ी प्राइवेट कंपनियों की रिफाइनरियां है। रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी, दोनों सबसे ज्यादा क्रूड ऑयल प्रोसेस करती हैं। रिलायंस ने प्रति बैरल 12.5 डॉलर और नायरा ने 15.2 डॉलर का रिफाइनिंग मार्जिन हासिल किया। यानी, सस्ते में खरीदा, प्रोसेस किया और महंगे में बेचकर हर बैरल पर ज्यादा मुनाफा कमाया।

रूसी कच्चे तेल में रिलायंस-नायरा की 45% हिस्सेदारी: डेटा और एनालिटिक्स कंपनी केपलर के अनुसार, 2025 की पहली छमाही (24 जून तक) में भारत ने रूस से 23.1 करोड़ बैरल क्रूड आयात किया। रिलायंस और नायरा की इसमें 45% हिस्सेदारी थी। 2022 में रिलायंस की हिस्सेदारी 8% और नायरा की 7% थी।

रिलायंस ने कुल तेल का लगभग 30% रूस से खरीदा: रिलायंस के एक प्रवक्ता ने कहा कि रिलायंस द्वारा खरीदे जाने वाले कच्चे तेल का लगभग 30% रूस से आता है। लेकिन केवल रूसी कच्चे तेल पर छूट को ही मुनाफे का कारण बताना गलत है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते मिली छूट से पहले और बाद भी ऐसा ही रहा है। यूरोप को प्रोडक्ट बेचकर जो कमाई होती है, वह हमारे कुल उत्पादन का एक छोटा सा हिस्सा है।

रूसी तेल को प्रोसेस करके अमेरिका-यूरोप में बेचा: रूसी क्रूड ऑयल को आयात करके और इसे पेट्रोल, डीजल और ATF जैसे हाई वैल्यू प्रोडक्ट में रिफाइन किया गया। इसके बाद इन्हें यूरोप, अमेरिका, यूएई, सिंगापुर जैसे देशों में निर्यात किया। 2025 की पहली छमाही में दोनों कंपनियों ने 6 करोड़ टन रिफाइंड प्रोडक्ट्स निर्यात किए, जिनमें से 1.5 करोड़ टन यूरोपीय यूनियन को बेचे गए। इसकी कीमत 15 अरब डॉलर थी।

सवाल 3: रूस से सस्ता तेल खरीदने की शुरुआत कैसे हुई?

जवाब: फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूरोप ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद रूस ने अपने तेल को एशिया की ओर मोड़ा। भारत ने 2021 में रूसी तेल का सिर्फ 0.2% आयात किया था, लेकिन 2023 तक यह 2.15 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुंच गया। 2025 में रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बना, जो औसतन 1.67 मिलियन बैरल प्रति दिन की आपूर्ति कर रहा है। यह भारत के कुल जरूरत का करीब 37% है।

सवाल 4: भारत रूस से तेल खरीदना क्यों नहीं बंद करता?

जवाब: भारत को रूस से तेल खरीदने के कई डायरेक्ट फायदे हैं...

अन्य देशों से सस्ता तेल: रूस अभी भी भारत को दूसरे देशों की तुलना में सस्ता तेल दे रहा है। 2023-2024 में रूस से सस्ते तेल की वजह से भारत ने 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की बचत की। हालांकि, जो डिस्काउंट पहले 30 डॉलर प्रति बैरल तक था वह अब 3-6 डॉलर प्रति बैरल तक रह गया है।

लॉन्ग-टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स: भारत की प्राइवेट कंपनियों के रूस के साथ लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट्स हैं। उदाहरण के लिए, दिसंबर 2024 में रिलायंस ने रूस के साथ 10 साल के लिए हर रोज 5 लाख बैरल तेल खरीदी का कॉन्ट्रैक्ट किया। इस तरह के समझौतों को रातोंरात तोड़ना संभव नहीं है।

वैश्विक कीमतों पर प्रभाव: भारत का रूसी तेल आयात वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में मदद करता है। यदि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है, तो ग्लोबल सप्लाई कम हो सकती है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं। यूक्रेन के साथ युद्ध के बाद मार्च 2022 में तेल की कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं।

भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल आयात करता है, जिसे वह रिफाइन करके पेट्रोल, डीजल और जेट ईंधन जैसे उत्पादों में बदलता है। इन उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों, खासकर यूरोप में निर्यात किया जाता है, जो रूस से सीधे तेल आयात पर प्रतिबंध लगाए हुए है। भारत का कहना है कि उसका यह व्यापार पूरी तरह पारदर्शी है और इसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं है।

रूस से तेल आयात पर कोई प्रतिबंध नहीं है, केवल एक प्राइस कैप लागू है, जो 2022 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने शुरू किया था। इस मूल्य सीमा का उद्देश्य रूस की तेल आय को सीमित करना था, लेकिन वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर रखने के लिए रूसी तेल को पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं किया गया। भारत ने तर्क दिया कि रूस से तेल खरीदने से वैश्विक तेल की कीमतें नियंत्रण में रहती हैं।

अगर रूस जैसे बड़े तेल उत्पादक का तेल बाजार से हट जाए, तो अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने 2022 में वाशिंगटन डीसी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूरोप के दोहरे रवैये की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था, "हम जो तेल खरीदते हैं, वह यूरोप द्वारा एक दोपहर में खरीदे गए तेल से कम है।

सवाल 5: भारत के पास रूस के अलावा किन देशों से तेल खरीदने के विकल्प हैं?

जवाब: भारत अपनी तेल जरूरतों का 80% से ज्यादा इंपोर्ट करता है। ज्यादातर तेल रूस के अलावा इराक, सऊदी अरब और अमेरिका जैसे देशों से खरीदता है। अगर रूस से तेल इंपोर्ट बंद करना है तो उसे इन देशों से अपना इंपोर्ट बढ़ाना होगा...

इराक: रूस के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर है, जो हमारे इंपोर्ट का लगभग 21% प्रोवाइड करता है।

सऊदी अरब: तीसरा बड़ा सप्लायर, जो हमारी जरूरतों का 15% तेल (करीब 7 लाख बैरल प्रतिदिन) सप्लाई करता है।

अमेरिका: जनवरी-जून 2025 में भारत ने अमेरिका से रोजाना 2.71 लाख बैरल तेल इंपोर्ट किया, जो पिछले से दोगुना है। जुलाई 2025 में अमेरिका की हिस्सेदारी भारत के तेल आयात में 7% तक पहुंच गई।

साउथ अफ्रिकन देश: नाइजीरिया और दूसरे साउथ अफ्रिकन देश भी भारत को तेल सप्लाई करते हैं और सरकारी रिफाइनरीज इन देशों की ओर रुख कर रही हैं।

अन्य देश: अबू धाबी (UAE) से मुरबान क्रूड भारत के लिए एक बड़ा ऑप्शन है। इसके अलावा, भारत ने गयाना ब्राजील, और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों से भी तेल आयात शुरू किया है। हालांकि, इनसे तेल खरीदना आमतौर पर रूसी तेल की तुलना में महंगा है।

रूसी टैरिफ के कारण ट्रम्प के लगाए 50% टैरिफ पर भारत ने क्या कहा?

जवाब: भारत ने इस अतिरिक्त टैरिफ को "अनुचित, अनपेक्षित और अव्यवहारिक" करार दिया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) के दोहरे मापदंडों को उजागर किया। भारत ने बताया कि अमेरिका खुद रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, पैलेडियम, उर्वरक और रसायन जैसे उत्पाद आयात करता है।

वहीं, यूरोपीय संघ का रूस के साथ 2024 में 67.5 अरब यूरो का व्यापार हुआ, जिसमें 16.5 मिलियन टन तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का आयात शामिल है। यह 2022 के 15.2 मिलियन टन के पिछले रिकॉर्ड से भी ज्यादा है। इसके अलावा, यूरोप रूस से उर्वरक, खनन उत्पाद, रसायन, लोहा-इस्पात, मशीनरी और परिवहन उपकरण भी आयात करता है।

भारत का कहना है कि पश्चिमी देश खुद रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसका रूस से तेल आयात राष्ट्रीय जरूरतों को पूरा करने के लिए है, न कि मुनाफे के लिए। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद फरवरी 2022 में भारत ने रूसी तेल आयात शुरू किया, क्योंकि यूरोप ने भारत के पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ताओं (खाड़ी देशों) से तेल खरीदना शुरू कर दिया था। भारत ने सस्ते रूसी तेल का उपयोग अपनी 1.4 अरब आबादी के लिए किफायती ऊर्जा सुनिश्चित करने के लिए किया।

अकेला भारत ऐसा देश नहीं है जो रूस से कच्चा तेल खरीदता है। 2024 में चीन ने 62.6 बिलियन डॉलर का तेल रूस से आयात किया था। वहीं भारत का इस दौरान रूस से तेल आयात 52.7 बिलियन डॉलर ही था। इसके बावजूद डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन पर अतिरिक्त टैरिफ न लगाते हुए ट्रेड डील के लिए 90 दिनों का समय दिया है।


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